अमेरिकी हिंसा पर आंसू , पालघर में साधुओं की हत्या पर चुप्पी-कंगना ने लताड़ा बॉलीवुड को
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नई दिल्ली- बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत ने बॉलीवुड सेलेब्स को एक बार फिर निशाने पर लिया है । पिंकविला को दिए इंटरव्यू में कंगना ने कुछ बॉलीवुड सेलेब्स द्वारा अमेरिका में हो रही हिंसा पर ट्वीट करने के लेकर निशाना साधा है। दरअसल अमेरिका के मिनिसोटा प्रांत में अश्वेत अमेरिकी जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के बाद से हिंसा का दौर जारी है। हॉलीवुड सेलेब्रिटीज के बाद अब बॉलिवुड सितारे भी सोशल मीडिया पर फ्लॉयड की हत्या पर नाराजगी जता रहे हैं। अब बॉलीवुड की ‘क्वीन’ कंगना रनौत ने बॉलीवुड सेलेब्स से सवाल पूछा है कि कुछ समय पहले साधुओं की लिंचिंग हुई थी उस वक्त ये सेलेब्स चुप क्यों थे?
कंगना ने कहा है कि शायद साधु और वो महिलाएं और बच्चे बॉलीवुड सेलेब्स के लिए उतने आकर्षक नहीं है। इसलिए बॉलीवुड वाले कभी इनकी तरफ ध्यान नहीं देते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने सेलेब्स पर निशाना साधते हुए कहा है कि ये दो मिनट के प्रचार के भूखे लोग हैं।
पिंकविला को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने इस मामले में हैरानी जताते हुए कहा कि #blacklivesmatter अभियान में जिस तरह से बॉलीवुड सेलेब्स की प्रतिक्रिया आ रही है। मुमकिन है ये सब आजादी से पहले की गुलाम सोच वाले जीन के कारण हो। कंगना रनौत ने बॉलीवुड सेलेब्स द्वारा चुनिंदा मुद्दों पर राय रखने की रवायत पर भी इस इंटरव्यू में तंज कसा। उन्होंने कहा कि वैसे भी जिसका नाम ही हॉलीवुड से लिया गया है, वहाँ लोग केवल विदेशी मुद्दों के बारे में ही सोचेंगे।
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पिंकविला से बातचीत से कंगना रनौत ने कहा, कुछ हफ़्ते पहले साधुओं के साथ मॉब लिंचिंग हुई थी।तब किसी सेलेब्स भी किसी ने एक शब्द नहीं कहा था। यह महाराष्ट्र में हुआ था, जहां ज्यादातर हस्तियों रहती हैं। बॉलीवुड सेलेब्स फेम के लिए सिर्फ बहती गंगा में हाथ धोते हैं। यह शर्म की बात है कि वे (बॉलिवुड सेलेब्रिटीज) हॉलीवुड की नकल करने लगते हैं, 2 मिनट के लिए फेमस होने के लिए।’
उन्होंने आगे कहा,’ यहां तक कि पर्यावरण के मुद्दों के लिए भी बॉलीवुड सेलेब्स केवल व्हाइट लोगों को सपोर्ट करते हैं। जबकि हमारे देश में ऐसे कई लोग हैं जो बिना मदद और सपोर्ट के साथ पर्यावरण के लिए शानदार काम कर रहे हैं। कुछ को तो पद्मश्री अवॉर्ड तक प्राप्त कर चुके हैं। लेकिन इंडस्ट्री उन्हें कभी सपोर्ट नहीं करती। क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि उनके सपॉर्ट के लिए साधु और आदिवासी लोग उनके फैशन के जितने फैंसी नहीं है।’
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