फूलों की खेती से चमकी गांव की किस्मत, आज कमाई पहुंची 10 करोड़ से भी ऊपर
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अजय कुमार ,कुरुक्षेत्र- कुरुक्षेत्र के शाहाबाद कस्बे के एक छोटे से गांव बीड़सूजरा ने फूलों के लिए अपनी अलग पहचान बना ली है। गांव में हो रही फूलों की खेती से गांव की किस्मत इस कदर चमकी है कि आज गांव की आमदनी 10 करोड़ रुपए सालाना से अधिक है। ये सब फूलों की खेती के कारण ही संभव हो पाया है। इसके चलते गांव में ही फूलों की मंडी लगनी शुरू हो गई है. रोचक बात ये है कि यह गांव 106 साल पहले विस्थापित होकर यहां बसा था। वर्ष 1914 में दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से माइग्रेट होकर आए इस गांव को बीहड़ (जंगल) में बसाया गया था। गांव के लोगों ने जंगल की जमीन को उपजाऊ जमीन में बदलकर यहां खेती करना शुरू किया। तभी आज यहां इतने बड़े पैमाने पर फूलों की खेती हो रही है, कि गांव का हर किसान फूलों की खेती करता है। इसी खेती के दम पर आमदनी बढ़ी और आज गांव का हर किसान सक्षम और आर्थिक रुप से संपन्न है।

100 एकड़ जमीन पर होती है फूलों की खेती
गांव के सबसे बुजुर्ग महाबीर सिंह बताते हैं कि जब वे इस गांव में आकर बसे तो एक झोपड़ी में रहते थे ऐसा उनके माता-पिता ने उन्हें बताया। एक ही गोत्र के 8 परिवारों के 40 लोग यहां आकर बसे थे। चारो तरफ जंगल था। जंगल की जमीन को ऊपजाऊ भूमि में बदला। खेती को आजीविका का आधार बनाया। फूलों की खेती पर ज्यादा जोर दिया। आज लगभग 100 एकड़ भूमि पर फूलों की खेती होती है। हर कोई अच्छा मुनाफा कमा रहा है। गांव की आबादी अब मात्र 2 हजार है।
मुनाफा शुरू हुआ तो एक-एक करके किसानों ने शुरू की फूलों की खेती
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गांव में फूल व्यापारी धर्मेंद्र बताते हैं कि गांव में पहले कुछ किसानों ने फूलों की खेती शुरू की थी। जब किसानों को मुनाफा हुआ तो धीरे-धीरे दूसरे किसानों ने भी खेती करनी शुरू कर दी। आज स्थिति ये है कि गांव का हर किसान फूलों की खेती करता है और उच्च गुणवत्ता के फूल उगा रहे हैं।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, जम्मू और हिमाचल में भेजे जाते हैं फूल
गांव के सबसे बड़े फूल व्यापारी श्यामलाल का कहना है कि यहां सालाना 10 करोड़ रुपए का फूलों का व्यापार हो रहा है। गांव से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल में फूल भेजे जाते हैं। अब गांव में ही फूलों की मंडी लगती है। बहुत से आढ़ती शहरों से फूल खरीदने के लिए यहां आते हैं।गांव में गेंदा, जाफरी, गुलाब और गुलदावरी फूलों की खेती की जाती है। 2 हजार की आबादी वाले इस गांव में हर एक किसान फूलों की खेती करता है।
शहरों जैसी सुविधाओं ने बनाया प्रसिद्ध
बीड़ सुजरा केवल विस्थापन और फूलों कि खेती से ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि एक मॉडल विलेज होने के कारण भी इसे एक अनूठा गांव माना जाता है। दरअसल जब गांव 1914 में दिल्ली से यहां विस्थापित हुआ तो इसे योजनाबद्ध तरिके से बसाया गया। सेक्टरों की तर्ज पर चौड़ी-चौड़ी सड़कें जो गांव के आर-पार होकर गुजरती हैं पहली बार गांव आए प्रत्येक व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं क्योंकि आमतौर पर ऐसी सड़कें गांवों में देखने को नहीं मिलती। गांवों में पशुपालन किया ही जाता है जिसकी वजह से आपको अधिकतर गांवों की सड़कों पर गोबर इत्यादि देखने को मिल जाता है लेकिन बीड़ सुजरा में किसी भी निवासी के लिए सड़कों पर पशु बांधना निषेध है और गोबर इत्यादि डालने के लिए सभी ग्रामवासियों को गांव से बाहर प्लॉट वितरित किए गए हैं जिनकी वजह से गांव में शहरों से भी अधिक साफ-सफाई देखने को मिलती है। हाल ही में गांव को सरकार की तरफ से निर्मल गांव का दर्जा दिया है। गांव में कूड़ा रिसाईकिल करने के लिए प्लांट लगाया गया है, सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद करने के लिए गांव के सभी चौंकों पर सीसीटीवी कैमरे, गलियों में स्ट्रीट लाईटें इसे एक अलहदा गांव बनाती हैं।
इस स्टोरी के लेखक अजय कुमार हैं
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