व्यंग्य -लौट के बुद्धु घर को आए
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नई दिल्ली- कल कांग्रेस के अचानक से अच्छे दिन शुरू हो गए। जब बागी सचिन ने इज्जत बचाते हुए राहुल गांधी के मुलाकात कर फिर से घर वापसी की इच्छा जताई। सचिन पायलेट का हाल कुछ ऐसा रहा कि ‘ माया मिली न राम’ । सचिन बेशक इसे आत्मसम्मान की लड़ाई का नाम दें लेकिन लड़ाई थी सत्ता की वो अशोक गहलोत से सत्ता छीनना चाहते थे। अशोक गहलोत ने राजनीति के अखाड़े में सचिन को ऐसी पटखनी दी कि रही सही इज्जत भी चली गई। उपमुख्यमंत्री का पद गंवाया, प्रदेश अध्यक्ष का पद गंवाया , इज्जत गई मुफ्त में।
राजनीति में लड़ाई कच्चे मन से नहीं लड़ी जाती है। मन को मजबूत होना पड़ता है। जब आप आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ रहे थे तो फिर लाभ हानि से परे होनी चाहिए थी। लेकिन सचिन लाभ हानि के चक्कर में ऐसे फंसे कि लाभ के लिए हानि सहने की कूव्वत नजर नहीं आई। अब लाख दुहाई देते फिरें कि ‘पार्टी पद दे सकती है तो ले भी सकती है’ पार्टी ने पद के साथ साथ इज्जत भी ले ली जो खुद कमाई थी। इज्जत लेकर अशोक गहलोत को दे दी।
अशोक गहलोत ने वो मजबूती दिखाई जो मुश्किल से ही कोई नेता दिखा पता है। अशोक गहलोत ने साफ कर दिया कि वो जादूगर है। इस बार उनके जादू के शिकार हुए सचिन । सचिन में वो कुव्वत नजर नहीं आई जो क्रिकेट खेलने वाले सचिन में दिखती है। ये वाले सचिन थोड़े कच्चे खिलाड़ी निकले। वैसे पेट में मरोड़ तो भरतपुर वाले महाराज के में भी उठ रही होगी। कि किसके चक्कर में फंसे । मंत्री पद भी गंवा दिया।
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चर्चा तो चल रही है कि सचिन पायलेट को राज्य की राजनीति से निकाल कर कांग्रेस में महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। एक और मुहावरा सुना होगा आपने ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कुंचे से निकले हम’। यह मुहावरा परिस्थितिजन्य हैं कि अब राजस्थान से बाहर निकलो। वैसे तो किसी फार्मुय्ले की बात की जा रही है । कि सचिन की वापसी का ये फॉर्मुय्ला तय किया गया है। जब राज्य की राजनीति से बाहर की कर दिया गया है तो फिर फॉर्मुल्ये की बात बेमानी हो जाती है। अंत में बस इतना कहना है कि राजस्थान की राजनीति में इस वक्त एक मुहावरा सटीक बैठता है सुना होगा आपने , लौट के बुद्धु घर को आए
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