कहानी बाबा विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की , एक दीवानी मुकदमा जो दशकों से चल रहा है
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नई दिल्ली- 1991 में अयोध्या में जब विवादित ढांचे का ध्वंस हुआ था। तब देश ने हिंदू गौरव की बात करनी शुरू की थी। क्या देश आजाद होने और इस्लाम के नाम पर एक देश पाकिस्तान की स्थापना होने के बावजूद हिंदुओं को वो सब प्राप्त हो गया था जो उनको होना चाहिए था। क्या वो मंदिर सभी रिस्टोर किए जा चुके थे वो इस्लामी आक्रांताओं ने तोड़ दिए थे और मस्जिद बना दी गई थी। आजादी के दशकों बाद भी इस पर कोई चर्चा नहीं हुई थी। 1990 में देश में आंदोलन की लहर उठी और अयोध्या में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया। उसके दशकों बाद 2020 में भगवान राम को उनका मंदिर मिलने जा रहा है। उसी आंदोलन में ‘मथुरा काशी बाकी है’ के नारे गुंजायमान हुए थे। अब जब देश के समस्त हिंदुओं को अयोध्या में भगवान राम का मंदिर मिलने जा रहा है। तो बात काशी बाबा विश्वनाथ और मथुरा कृष्ण जन्म भूमि की भी हो रही है।
क्या है काशी का विवाद
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास अयोध्या की तरह विवादित नहीं है। यहां कई बातें साफ हैं जैसे सभी ये बात जानते और मानते हैं कि बाबा विश्वनाथ के मंदिर को औरंगजेब ने तोड़ा था और यहां ज्ञानवापी मस्जिद बना दी थी। ज्ञानवापी में आज मंदिर का स्ट्रक्चर नजर आता है। कई बातों को सभी पक्ष सहज स्वीकार करते हैं। मसलन, यह तथ्य विवादित नहीं है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने करवाया था और यह निर्माण मंदिर तोड़कर किया गया था। औरंगजेब से पहले भी काशी विश्वनाथ मंदिर कई बार टूटा और कई बार बनाया गया। लेकिन साल 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़कर वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी। मंदिर को फिर से बनाने के कई असफल प्रयासों के बाद आखिरकार साल 1780 में अहिल्या बाई होलकर ने मस्जिद के पास एक मंदिर का निर्माण करवाया और यही आज काशी विश्वनाथ मंदिर कहलाता है।
कब हुआ मुकदमा दायर
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सन 1991 में यह मुकदमा काशी के तीन लोगों ने दाखिल करवाया था। इन तीन लोगों के नाम है पंडित सोमनाथ व्यास, पंडित रामरंग शर्मा एवं हरिहर पांडेय। इस मुकदमे में भगवान ‘स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर चौथे वादी हैं।’ इस पक्ष की पैरवी बीते कई सालों से अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘हमारा पक्ष बेहद मजबूत है और हमें एक सौ एक प्रतिशत विश्वास है कि फैसला हमारे पक्ष में होगा।’ दूसरी तरफ अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के संयुक्त सचिव और प्रवक्ता एसएम यासीन भी ठीक ऐसा ही दावा करते हुए कहते हैं, ‘इस मामले में हमारा पक्ष पूरी तरह से संविधान सम्मत है और हम आश्वस्त हैं कि कानूनन हमारा पक्ष ज्यादा मजबूत है।’
क्या ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) ऐक्ट, 1991
इस ऐक्ट के अनुसार, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991। यह कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 के दिन जो धार्मिक स्थल जिस समुदाय या संप्रदाय के पास था, वो अब भविष्य में भी उसी का रहेगा। यानी आजादी के दिन जहां मंदिर था वहां अब मंदिर ही रहेगा भले ही आजादी से पहले वहां मस्जिद हुआ करती हो। और ऐसे ही जहां मस्जिद है वहां अब मस्जिद की ही दावेदारी रहेगी भले ही वहां पहले कोई मंदिर क्यों न रहा हो। अयोध्या को इस कानून की परिधि से बाहर रखा गया था लेकिन काशी समेत तमाम अन्य धर्मस्थलों पर यह लागू हुआ और आज भी लागू है। हिंदू पक्ष इस कानून में में संशोधन की मांग उठाते रहे हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दाखिल की गई है जिसका नतीजा आना अभी बाकी है।
क्या कहता है हिंदू पक्ष
इस केस के पैरवी अधिवक्ता विजय रस्तौगी कर रहे हैं उनका कहना है कि हिंदू पक्ष इस केस में ज्यादा मजबूत है। वे कहतें हैं कि यदि 1991 के कानून को न भी बदला जाए तब भी हिंदुओं का पक्ष कमजोर नहीं है। वे कहते हैं, ‘हम 1991 के कानून को अगर मान भी लें तो यह तो तय करना ही होगा कि 15 अगस्त 1947 के दिन उस जगह पर मंदिर थी या मस्जिद थी। हमारा कहना है कि उस जगह पर हमेशा से मंदिर ही रहा है और इसकी जांच के लिए पुरातात्विक सर्वेक्षण करवा लिया जाए। इसी से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।’
हालांकि 1991 के मूल वाद में हिंदू पक्ष की मांग है कि विवादित क्षेत्र स्वयंभू विश्वेश्वर का ही अंश है इसलिए यह यह हिस्सा हिंदुओं को सौंप दिया जाए। लेकिन यह पूरा मामला विजय शंकर रस्तोगी द्वारा उठाई गई पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग पर आकर सिमट गया है। रस्तोगी इस विवाद से जुड़े एक और पहलू को उठाते हुए बताते हैं, ‘मुस्लिम पक्ष ने बाकायदा लिखित में न्यायालय से कहा है कि विवादित मस्जिद ‘अहल ए सुन्नत’ से वहां कायम है। इसका मतलब है वो दावा कर रहे हैं कि जब से कुरान नाजिर हुई है, तब से उस स्थान पर मस्जिद है। यह दावा ऐतिहासिक प्रमाणों के विपरीत है फिलहाल मुस्लिम पक्ष अपने ही दावों में फंस गया है।’
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