जिस दिन अलविदा बोला प्रणब मुखर्जी ने , उसी दिन जीडीपी में हुई एतिहासिक गिरावट
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नई दिल्ली- देश के एतिहास में 31 अगस्त हमेशा याद रखा जाएगा। 31 अगस्त को देश की जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इतनी बड़ी गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था ने 40 सालों से नहीं देखी थी। 31 अगस्त को प्रणब मुखर्जी देश को अलविदा कह गए। वो दो बार देश के वित्तमंत्री रहे। 2009 से 2012 के कार्यकाल में भारतीय इकॉनॉमी ने अच्छे दिन देखे थे। इस दौरान भारत का ग्रोथ रेट 8.5 प्रतिशत रहा जो 2009 से लेकर 2020 तक सबसे अधिक है। प्रणब मुखर्जी का जाना और जीडीपी में एतिहासिक गिरावट का जैसे कोई सम्बंध हो। आज देश ने एक अच्छा अर्थशास्त्री खो दिया।
प्रणब मुखर्जी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अफ्रीकी विकास बैंक के प्रशासक बोर्ड के सदस्य भी रहे थे। सन 1984 में उन्होंने आईएमएफ और विश्व बैंक से जुड़े ग्रुप-24 की बैठक की अध्यक्षता की थी। मई और नवम्बर 1995 के बीच उन्होंने सार्क मन्त्रिपरिषद सम्मेलन की अध्यक्षता की थी ।
जीडीपी में एतिहासिक गिरावट
सोमवार को सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 की अप्रैल से जून तिमाही के लिए जीडीपी के आंकड़े जारी किए। आंकड़े के मुताबिक इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद में 23.9 फीसदी की ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है। जुलाई महीने में आठ उद्योगों के उत्पादन में 9.6 फीसदी की गिरावट आई है। पहली तिमाही में स्थिर कीमतों पर यानी रियल जीडीपी 26.90 लाख करोड़ रुपये की रही है, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 35.35 लाख करोड़ रुपये की थी। इस तरह इसमें 23.9 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले साल इस दौरान जीडीपी में 5.2 फीसदी की बढ़त हुई थी।
गिरावट के कारण
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गौरतलब है कि इस तिमाही में दो महीने यानी अप्रैल और मई में लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था पूरी तरह ठप रही है और जून में भी इसमें थोड़ी ही रफ्तार मिल पाई। इस वजह से रेटिंग एजेंसियों और इकोनॉमिस्ट ने इस बात की आशंका जाहिर की है कि जून तिमाही के जीडीपी में 16 से 25 फीसदी की गिरावट आ सकती है। अगर ऐसा हुआ तो यह ऐतिहासिक गिरावट होगी।
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औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों, केंद्र और राज्य सरकारों के व्यय आंकड़ों, कृषि पैदावार और ट्रांसपोर्ट, बैंकिंग, बीमा आदि कारोबार के प्रदर्शन के आंकड़ों को देखते हुए यह आशंका जाहिर की जा रही है।
क्या हो सकता है आम आदमी के जीवन पर असर
जीडीपी के आंकड़ों का आम लोगों पर भी असर पड़ता है। अगर जीडीपी के आंकड़े लगातार सुस्त होते हैं तो ये देश के लिए खतरे की घंटी मानी जाती है। जीडीपी कम होने की वजह से लोगों की औसत आय कम हो जाती है और लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। इसके अलावा नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार भी सुस्त पड़ जाती है। आर्थिक सुस्ती की वजह से छंटनी की आशंका बढ़ जाती है। वहीं लोगों का बचत और निवेश भी कम हो जाता है।
जीडीपी रेट में गिरावट का सबसे ज्यादा असर गरीब लोगों पर पड़ता है। भारत में आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा है। इसलिए आर्थिक वृद्धि दर घटने का ज्यादा असर गरीब तबके पर पड़ता है। इसकी वजह यह है कि लोगों की औसत आय घट जाती है। नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार घट जाती है।
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