10 फीसदी वोट के साथ तीसरा मोर्चा बन सकता है किंगमेकर, बिगाड़ेंगे NDA और महागठबंधन का खेल
- Advertisement -
पटना -बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग का प्रचार प्रसार समाप्त हो चुका है। नेताओं का हवाई दौरा तीसरे चरण में होने वाले मतदान क्षेत्रों का रूख कर लिया है। आपको बता दें इस बार के चुनाव में मुख्य मुकाबला महागठबंधन और NDA के बीच की है। जहां कांग्रेस, आरजेडी और वाम दलों का गठबंधन है तो दूसरी तरफ बीजेपी, जेडीयू , हम और वीआईपी पार्टी का गठबंधन है। इन सब के बीच एक तीसरा मोर्चा भी है जो लगातार चुनाव में अपनी पैठ जमाने में लगा है। तीसरा मोर्चा के रूप में ग्रैंड डेमोक्रेटीक सैक्यूलर फ्रंट है, जिसके प्रमुख आरएलएसपी अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा है।
GDSF गठबंधन ने NDA और महागठबंधन को घेरने और चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के लिए अलग से अपनी रणनीति को आगे बढ़ा रहा है। GDSF गठबंधन में कुल 6 पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में सवाल उठ रहा कि क्या ये फ्रंट बिहार चुनाव में किंगमेकर बनकर उभर सकता है?
GDSF गठबंधन के सीएम उम्मीदवार और आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा पहले महागठबंधन का हिस्सा रहें ,चुनाव से ठीक पहले वह एनडीए गठबंधन के भी संपर्क में आएं लेकिन दोनों जगहों पर बात नही बनने से कुशवाहा ने आखिर में नई रणनीति बनाई। उन्होंने बीएसपी सुप्रीमो मायावती, ओवैसी की पार्टी AIMIM समेत छह पार्टियों का नया गठबंधन बनाया। इस गठबंधन में समाजवादी जनता दल (लोकतांत्रिक), सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी, जनतांत्रिक पार्टी- सोशलिस्ट भी शामिल हैं।
पहले चरण में 62 सीटों पर किया जमकर प्रचार
- Advertisement -
ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट की अच्छी प्रदर्शन के लिए कुशवाहा ने पहले चरण की 71 सीटों में से 62 पर जमकर चुनाव प्रचार किया। यही नहीं, दूसरे चरण की भी कई सीटों को लेकर इस फ्रंट के नेताओं ने जोर-आजमाइश में कोई कमी नहीं छोड़ी। ऐसा माना जा रहा कि ये छह पार्टियां मिलकर करीब 10 फीसदी वोट पर अपना कब्जा जमा सकती है। अगर ऐसा होता है और एनडीए-महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली तो यह फ्रंट किंगमेकर की भूमिका में आ सकता है।
- Advertisement -
आपको बता दें कि GDSF गठबंधन की ओर से चुनाव में आरएलएसपी ने जहां 104 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, वहीं बीएसपी 80 सीटों पर और AIMIM 20 सीटों पर दावेदारी कर रही है। कुशवाहा की आरएलएसपी का असर औरंगाबाद, कैमूर, पूर्वी चंपारण, रोहतास, शेखपुरा, बक्सर, मुंगेर और जमुई में माना जाता है। बीएसपी का रोहतास, कैमूर, गोपालगंज और यूपी के सीमावर्ती इलाकों में खासा प्रभाव है। वहीं ओवैसी की पार्टी AIMIM का सीमांचल के इलाकों में प्रभाव है। कुल मिलाकर इस गठबंधन की वजह से जेडीयू-आरजेडी के वोटों में कुछ सेंधमारी जरूर हो सकती है जिसकी वजह से दोनों पार्टियों का गणित प्रभावित हो सकता है।
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरएलएसपी को करीब 3.6 फीसदी वोट मिले थे। पार्टी ने दो सीटें अपने नाम करने में कामयाबी हासिल की थी। बीएसपी को भी उस चुनाव में दो फीसदी मत मिले थे लेकिन पार्टी के खाते में कोई सीट नहीं आई थी। हालांकि, इस बार हालात बदले हुए हैं क्योंकि ये पार्टियां एक गठबंधन में चुनावी रण में उतरी हैं। ऐसे में अगर सभी पार्टियों का वोट एक-दूसरे को मिलता है तो नतीजों में बड़ा बदलाव नजर आ सकता है। फिलहाल यह कितना सफल होगा ये चुनाव नतीजों के बाद ही पता चलेगा।
इसे भी पढ़े –
लालू की जीवन यात्रा पर जदयू की वेबसाइट दिखाने जा रही फूलवरिया से होटवार जेल यात्रा की आंखों देखी
- Advertisement -