तीन कृषि बिलों पर क्यों मचा है घमासान, क्या चाहते हैं आंदोलनकारी किसान ,यहां जानिए सबकुछ
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नई दिल्ली- कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का मार्च जारी है। किसान किसी भी कीमत पर दिल्ली पहुंचना चाहते हैं तो प्रशासन किसानों को दिल्ली नहीं पहुंचने देना चाहता है। कल से लेकर आज तक यही रस्साकशी चल रही है। तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों ने खासी नाराजगी है। इन बिलों को लेकर पंजाब के किसान लगातार प्रदर्शन करते रहे हैं।
किसान ट्रैक्टरों से दिल्ली आ रहे हैं जिन्हें हरियाणा में रोका गया है। जिन बिलों को मोदी सरकार (Modi Government) किसानों के लिए वरदान बता रही है आखिर उसके खिलाफ किसान क्यों सड़कों पर उतरे हुए हैं। समझते हैं कि इस आंदोलन की जड़ क्या है? और किसान क्यों इन बिलों के खिलाफ लगातार उग्र होते जा रहे हैं। आइये पॉइंटवाइज समझते हैं कि किसान इस नए कृषि कानून से क्यों खफा हैं। उनका इन नए कानूनों को लेकर क्या डर है।
1- किसानों को सबसे बड़ा डर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP- Minimum Support Price) खत्म होने को लेकर है। इस बिल के जरिए सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति (APMC-Agricultural produce market committee) यानी मंडी से बाहर भी कृषि कारोबार का रास्ता खोल दिया है। मंडी से बाहर भी ट्रेड एरिया घोषित हो गया है। मंडी के अंदर लाइसेंसी ट्रेडर किसान से उसकी उपज एमएसपी पर लेते हैं। लेकिन बाहर कारोबार करने वालों के लिए एमएसपी को बेंचमार्क नहीं बनाया गया है। इसलिए मंडी से बाहर एमएसपी मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
सरकार ने बिल में मंडियों को खत्म करने की बात कहीं पर भी नहीं लिखी है। लेकिन उसका इंपैक्ट मंडियों को तबाह कर सकता है। इसका अंदाजा लगाकर किसान डरा हुआ है। इसीलिए आढ़तियों को भी डर सता रहा है। इस मसले पर ही किसान और आढ़ती एक साथ हैं। उनका मानना है कि मंडियां बचेंगी तभी तो किसान उसमें एमएसपी पर अपनी उपज बेच पाएगा।
2-इस बिल से ‘वन कंट्री टू मार्केट’ वाली नौबत पैदा होती नजर रही है। क्योंकि मंडियों के अंदर टैक्स का भुगतान होगा और मंडियों के बाहर कोई टैक्स नहीं लगेगा। अभी मंडी से बाहर जिस एग्रीकल्चर ट्रेड की सरकार ने व्यवस्था की है उसमें कारोबारी को कोई टैक्स नहीं देना होगा। जबकि मंडी के अंदर औसतन 6-7 फीसदी तक का मंडी टैक्स (Mandi Tax) लगता है।
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किसानों की ओर से यह तर्क दिया जा रहा है कि आढ़तिया या व्यापारी अपने 6-7 फीसदी टैक्स का नुकसान न करके मंडी से बाहर खरीद करेगा। जहां उसे कोई टैक्स नहीं देना है। इस फैसले से मंडी व्यवस्था हतोत्साहित होगी। मंडी समिति कमजोर होंगी तो किसान धीरे-धीर बिल्कुल बाजार के हवाले चला जाएगा। जहां उसकी उपज का सरकार द्वारा तय रेट से अधिक भी मिल सकता है और कम भी।
3-किसानों की इस चिंता के बीच राज्य सरकारों-खासकर पंजाब और हरियाणा की राज्कोय सरकारों को इस बात का डर सता रहा है कि अगर निजी खरीदार सीधे किसानों से अनाज खरीदेंगे तो उन्हें मंडियों में मिलने वाले टैक्स का नुकसान होगा। दोनों राज्यों को मंडियों से मोटा टैक्स मिलता है, जिसे वे विकास कार्य में इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, हरियाणा में बीजेपी का शासन है इसलिए यहां के सत्ताधारी नेता इस मामले पर मौन हैं।
4-एक बिल कांट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित है। इसमें किसानों के अदालत जाने का हक छीन लिया गया है। कंपनियों और किसानों के बीच विवाद होने की सूरत में एसडीएम फैसला करेगा। उसकी अपील डीएम के यहां होगी न कि कोर्ट में। किसानों को डीएम, एसडीएम पर विश्वास नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि इन दोनों पदों पर बैठे लोग सरकार की कठपुतली की तरह होते हैं। वो कभी किसानों के हित की बात नहीं करते।
इन बिलों के फायदे
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