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हिमाचल झाजड़ा परंपरा: उत्तराखंड से बारात लेकर पहुंची दुल्हन

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झाजड़ा परंपरा: झाजड़ा परंपरा में दूल्हा बरात लेकर दुल्हन के घर नहीं जाता। दूल्हे के गांव का एक व्यक्ति दुल्हन के घर जाता है और वहां से दुल्हन गांव के सभी लोगों के साथ उस व्यक्ति के साथ दूल्हे के घर पहुंचती है।

हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के शिलाई उपमंडल में पुरातन रीति-रिवाज से एक परिवार के तीन सगे भाइयों की शादियां हुईं। यहां बरात लेकर दूल्हा दुल्हन के घर नहीं गया, बल्कि उत्तराखंड से एक दुल्हन बरात लेकर ससुराल पहुंचीं और पूरी रस्मों व रीति-रिवाज के साथ शादी के बंधन में बंध गईं।

उत्तराखंड से आईं बरात

खास बात यह रही कि उत्तराखंड से बरात लेकर आईं सुमन के परिवार के साथ दहेज को लेकर कोई लेन-देन नहीं हुआ। उत्तराखंड की दुल्हन सिर्फ अपने घर से लोटा, बंटा और परात लेकर आईं। न ही शराब परोसी गई। उत्तराखंड का चकराता जनजातीय क्षेत्र है।

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शिलाई और उत्तराखंड के जौनसार बाबर में इस तरह की परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं। दूल्हे के पिता कुंभराम ने बताया कि शादी समारोह में नशे पर पूरी तरह पाबंदी रही।

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गिरिपार में चार तरह के विवाह की परंपरा
जनजातीय क्षेत्र गिरिपार में पुरानी परंपरा के अनुसार चार प्रकार के विवाह होते हैं। पहला विवाह बाला ब्याह होता है। इस परंपरा में पहले ही लड़की के विवाह की बात पक्की हो जाती थी। कई बार बच्चे के जन्म से पूर्व भी रिश्ता तय किया जाता था

खिताइयूं विवाह
तीसरे प्रकार का विवाह खिताइयूं कहलाता है। एक से अधिक शादियां करने वाली लड़की के विवाह को खिताइयूं कहते हैं। चौथे प्रकार का विवाह हार प्रथा के अनुसार होता है।

कोई लड़की या कोई महिला अपनी इच्छा से किसी व्यक्ति के साथ भाग जाती है तो उसे हार विवाह कहते हैं। लड़की को भगाने वाले व्यक्ति को आर्थिक दंड भी लगाया जाता है, जिसे हरोंग कहते हैं। लेकिन, अब ऐसे विवाह की परंपरा लगभग खत्म हो गई है। झाजड़ा प्रथा के अनुसार विवाह अभी भी बरकरार है। इसमें दहेज नहीं दिया जाता।

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