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उत्तराखंड कांग्रेस में क्यों मचा घमासान, क्या हरीश रावत को साइड करने की कोशिश हो रही है?

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देहरादून- कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत के तीन ट्वीट ने कांग्रेस में चल रहे घमासान को सतह पर ला दिया है।  उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के ट्वीट्स के इतना तो साफ हो गया है कि कांग्रेस में उन्हें साइड करने की जद्दोजेहद में कुछ नेता लगे हुए हैं। लेकिन उत्तराखंड कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को उत्तराखंड की राजनीति से गायब करना इतना आसान नहीं हैं। तराई से लेकर पहाड़ तक हरीश रावत की लोकप्रियता जगजाहिर है।

विधायक और सांसद आए हरीश रावत के पक्ष में

जागेश्वर से विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल धारचूला से विधायक हरीश सिंह धामी और राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा ने खुलकर हरीश रावत का समर्थन किया है। विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा है  कि चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष होने नाते पार्टी के सभी कार्यक्रम हरीश रावत के नेतृत्व व मार्गदर्शन में होने चाहिए थे। मगर कुछ लोगों ने अलग रैली और कार्यक्रम शुरू किए तो विवाद खड़ा होना स्वाभाविक है। मेरा मानना है कि जो लोग कांग्रेस को सत्ता में नहीं चाहते, यह कारनामे उनके हैं। जनता और तमाम सर्वे कह चुके हैं कि हरीश रावत से बड़ा नेता उत्तराखंड में कोई नहीं है। उनके भीतर प्रदेश को लेकर पीड़ा है। अगर वह दूसरे दल में जाते हैं तो हम सब साथ जाएंगे।

हरदा को मिले एक और मौका- हरीश धामी

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विधायक धारचूला हरीश धामी ने कहा कि आपदा के वक्त राज्य की कमान मिलने के बावजूद हरीश रावत ने केदारनाथ को संवारने में पूरी ताकत लगा दी। राष्ट्रपति शासन के चक्कर में एक साल सरकार प्रभावित रही। इसलिए जनता चाहती है कि हरदा को एक मौका और मिले। जनसभा, रैली समेत अन्य कार्यक्रमों के जरिये वही कांग्रेस के लिए माहौल बना रहे हैं। पार्टी और राज्य को पूरा जीवन समर्पित करने वाले हरीश रावत अगर सीएम नहीं बने तो हरीश धामी निर्दलीय रहेगा। सबकी चाहत-हरीश रावत।

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हरीश रावत को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाए

राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा का कहना है कि उत्तराखंड हरीश रावत कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता हैं। 2002 में विधायकों के समर्थन के बावजूद परिस्थितियां उनके अनुकूल नहीं बनी।  चार कार्यकारी अध्यक्ष के फार्मूले में एक नाम उस नेता का है जिसने स्व. एनडी तिवारी की सरकार को कमजोर किया। और दूसरे नाम उसका है जिसने हरीश रावत की सरकार को बदनाम किया। सल्ट उपचुनाव में एक नकारात्मक माहौल बनाने वाले को अहम जिम्मेदारी क्यों सौंपी गई। उत्तराखंड कांग्रेस के कमांडर हरीश रावत ही है। उन्हें चेहरा घोषित करना चाहिए।

मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने की है लड़ाई

दरअसल हरीश रावत की पीड़ा ऐसे ही सामने नहीं आई है। उन्हें लग रहा है कि उत्तराखंड के प्रभारी देवेन्द्र यादव कहीं न कहीं उनके खिलाफ एक माहौल खड़ा कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने समय रहते अपने पत्ते खेल दिए हैं ताकि कांग्रेस के नेतृत्व पर दवाब बनाया जा सके। कांग्रेस नेतृत्व यह साफ समझता है कि आगामी विधानसभा चुनावों में हरीश रावत के बिना जीत दर्ज नहीं की जा सकती है। यह बात हरीश रावत अपने पक्ष में भुनाना चाहते हैं। दरअसल उत्तराखंड के प्रभारी देवेन्द्र यादव चुनावों को मैनेज कर सकते हैं लेकिन वह उत्तराखंड की जनता में कोई लोकप्रिय नाम नहीं हैं। उनके नाम पर वोट नहीं मिल सकती हैं। चुनावों में वोट केवल हरीश रावत के नाम पर ही मिल सकती हैं।

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