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मुख्तार से जुड़े उमेश पाल हत्याकांड के तार, अपराधियों से मोर्चा लेने में ढिलाई बरत रही

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राजूपाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की हत्या के मामले की जांच कर रही पुलिस को मुख्तार अंसारी गैंग की भूमिका के प्रमाण मिल रहे हैं। मुख्तार के चचेरे भाई मंसूर की अतीक के भाई अशरफ और बेटे अली से बीते कुछ दिनों के दौरान जेल में हुई मुलाकात की गहनता से जांच की जा रही है। पुलिसअधिकारी अशरफ और अली से पूछताछ कर रहे हैं। वहीं तीन राज्यों में शूटरों की तलाश में छापामारी की जा रही है।

एसटीएफ की प्रारंभिक जांच में पता चला कि उमेश पाल की हत्या की साजिश गुजरात की साबरमती जेल में बंद पूर्व सांसद अतीक अहमद ने रची थी। एसटीएफ की शुरुआती पड़ताल में इसकी पुष्टि हुई है। सुराग मिले हैं कि मुख्तार के कुछ गुर्गे गुजरात जेल में बंद अतीक के संपर्क में थे।

आशंका है कि अतीक ने इन गुर्गों के जरिए अपने भरोसेमंद गुड्डू मुस्लिम और गुलाम से उमेश पाल को ठिकाने लगाने को कहा था। इसके बाद दोनों ने स्थानीय युवकों की मदद से इस घटना को अंजाम दिया।

हत्याकांड में शामिल एक शूटर को अभी तक चिह्नित नहंी किया जा सका है। घटना को अंजाम देने वालों की गिरफ्तारी के लिए प्रयागराज कमिश्नरेट जल्द ही इनाम की घोषणा कर सकता है।

लखनऊ में भी हुई पूछताछ

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एसटीएफ की टीमों ने लखनऊ में भी अतीक और गुड्डू मुस्लिम के करीबियों से पूछताछ की है। वहीं जौनपुर, वाराणसी के साथ मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में दो दर्जन से ज्यादा ठिकानों पर एसटीएफ शूटरों की तलाश कर रही है।

ईडी जांच के दौरान रहा सक्रिय

मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी के खिलाफ चल रही प्रवर्तन निदेशालय की जांच के दौरान भी मंसूर प्रयागराज में खासा सक्रिय था। इस दौरान उसने नैनी जेल में अतीक के बेटे से मुलाकात की थी। इसकी जानकारी हासिल करने के लिए एसटीएफ नैनी जेल के सीसीटीवी खंगालने की तैयारी में है।

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पुलिस की खुली पोल

प्रयागराज कमिश्नरेट में शुक्रवार को हुई दुस्साहिक वारदात ने पुलिस के दावों और इंतजामों की पोल खोल दी। बदमाशों से मोर्चा लेने में सुस्ती का नतीजा कई बड़ी वारदातों के रूप में उभर कर आया है। आपको जानकर हैरत होगी कि प्रदेश के सभी आठ जोन में बीते छह वर्ष के दौरान प्रयागराज में सबसे कम मुठभेड़ हुई। इतना ही नहीं, कमिश्नरेट बनने के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा। नवगठित तीन कमिश्नरेट में पुलिस मुठभेड़ के मामले में प्रयागराज फिसड्डी साबित हुआ।

पुलिस विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2017 से 2022 के दरम्यान प्रयागराज जोन में मात्र 332 पुलिस मुठभेड़ हुई। जबकि मेरठ में 3110, आगरा में 1804, बरेली में 1468, वाराणसी में 676, लखनऊ में 491, कानपुर मे 414, गोरखपुर में 384 पुलिस मुठभेड़ हुईं।

इसी तरह तीन माह पूर्व गठित तीन कमिश्नरेट में से प्रयागराज में मात्र 112 पुलिस मु़ठभेड़ हुई। वहीं गाजियाबाद में 410 और आगरा में 307 मुठभेड़ हो चुकी हैं। इसका असर अपराधियों पर बरती जाने वाली सख्ती पर भी नजर आया।

अपराधियों की गिरफ्तारी के मामले में भी प्रयागराज जोन और कमिश्नरेट फिसड्डी साबित हुआ है। शनिवार को प्रयागराज के धूमनगंज इलाकेमें राजूपाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल केअलावा एक गनर की मौत भी हो गयी।

बीते छह वर्ष के कानपुर के बिकरू कांड में आठ पुलिसकर्मियों केशहीद होने के बाद आगरा और प्रयागराज में दो-दो पुलिसकर्मियों को अपना कर्तव्य निभाते हुए जान गंवानी पड़ी है। तीनों नए कमिश्नरेट में पुलिस मुठभेड़ के दौरान गाजियाबाद में 99, आगरा में 28 पुलिसकर्मी घायल हुए जबकि प्रयागराज में सात घायल हुए।

पुलिस अफसरों पर लगे दाग

प्रयागराज जोन में पुलिस अफसरों पर बीते छह वर्ष के दौरान तमाम दाग लगे। महोबा के एसपी मणिलाल पाटीदार का मामला लंबे अर्से तक सुर्खियों में रहा तो प्रयागराज के एसएसपी बनाए गये अभिषेक दीक्षित पर ट्रांसफर-पोस्टिंग में भ्रष्टाचार करने के मामले की विभागीय जांच करायी गयी।

प्रतापगढ़ में पुलिस अधिकारियों का काम कर पाना मुश्किल होता गया। प्रयागराज में कई लोगों की हत्या के मामले समाने आए। वकीलों और छात्राें केसाथ पुलिस को कई बार संघर्ष करना पड़ा। पिछले वर्ष हुए अटाला कांड ने कानून-व्यवस्था और खुफिया की तैयारियों को तार-तार कर दिया

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